देश हमारा सबसे पहले ,फिर उसके कुछ बाद नहीं।
सच बतलाओ देशवासियों, पुलवामा क्या याद नहीं।
रचा गया षड्यंत्र था कैसा,
कोई जान नहीं पाया।
हँसते गाते वीरों पर कब,
छाया आतंकी साया।
हुआ जोर से एक धमाका,आगे कोई निनाद नहीं।
सच बतलाओ देशवासियों,
थे शहीद वो लाल किसी के,
मुख तक देख नहीं पाए।
हुई शहादत परिजन रोये,
और रोई उनकी माएँ।
दर्द सोच कर मन भर आता, जाता ये अवसाद नहीं।
सच बतलाओ देशवासियों,
गर्वित थे फिर भी सारे की,
देशभक्ति की राह चुनी।
एक देश का चित्र ह्रदय में,
दूजी न तस्वीर गुनी।
तन छलनी हो गया वार से, मन में कोई विषाद नहीं।
सच बतलाओ देशवासियों
जिसने भी वो देखा मंजर,
रातों तक न सो पाया।
सूनी आंखों रहा जागता,
कोई स्वप्न न फिर आया।
चैन अमन हो मेरे राष्ट्र में, अब हो कोई विवाद नहीं।
सच बतलाओ देशवासियों,
इंदु विवेक उदैनियाँ