तुमने मां को जी भर कर/कबसे नहीं देखा/ उसने खाना खाया कि नहीं/कब से नहीं पूंछा/ उसकी बीमारी में , कराहने की आवाज/ तुम्हें कब से नहीं सुनाई दी/वह टकटकी बांधे तकती है तुम्हारी राह/ वह तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती है/ स्नेह सने दो शब्द/ उसे तुमसे कुछ चाहिए नहीं/ वह तुम्हारी आवाज़ सुन कर / तुम्हारी दशा जानना चाहती है/और तुम भागते हों उससे दूर/ उसकी बातों पर झिड़कते हो/मां नहीं अब बुढ़िया कहते हो/इतना ही नहीं उसे छोड़ कर अकेले पुराने घर में/ अपने परिवार के साथ शहरों की चकाचौंध में रहते हो/हां अपने परिवार के साथ/क्योंकि वह अब तुम्हारे परिवार का हिस्सा नहीं होती/क्या एक बार भी उसकी याद कर/तुम्हारी आत्मा नहीं रोती/ याद नहीं आती होगी/मैं जानता हूं तुम्हारी उलझने और परेशानियां/मकान के किराए से लेकर बच्चों की फीस तक की कहानियां/तुम सोचते हो कि उसने तो अपना जीवन जी लिया/ इसीलिए अनाथाश्रमों में डाल दिया/ जब उसे तुम्हारी सबसे ज़्यादा जरुरत होती है/तब वह तुम्हारे लिए आउटडेटेड हो जाती है/ यही क्या कम है कि साल में एक बार याद कर लेते हो/ शुक्रिया आपको और सोशल मीडिया को/ कम से कम एक बार मां को कापी पेस्ट कर देते हो।
डा राजेश सिंह राठौर
वरिष्ठ पत्रकार
एवं विचारक