*चित्र आधारित रचना*
*विधा _दोहा*
*रस-हास्य रस*
सुंदर दिखती सुंदरा, लटक झटक है चाल।
लीपापोती से दिखे, गाल होंठ मुख लाल।।
बरखा भीगे साथ में, गोरी नाचे खूब।
रंग रूप सब छूटता, गई शर्म से डूब।।
हाय बुढ़ापा आ गया, सजे मेकअप साज।
सैर सपाटा साथ में, छोडे घर के काज।।
खुले केश लहरा रहे, बल खाती पग चाल।
तेज हवा में उड़ गएॅं, नकली सारे बाल।।
श्वेत केश को रंगती, मुख श्रृंगारित आज।
कड़क धूप बेहाल हो, उतर गया सब साज।।