दिनांक: 07/06/22
चित्र आधारित सृजन
देख रूप श्रृंगार में, समझे जैसे हूर।
हटा मेकअप जब लिया, लगती वो लंगूर।।
लाल लिपस्टिक होंठ पर, काजल लगा अपार।
निकली जब वो धूप में, हुआ हाल बेकार।।
रूप-सुंदरी मैं बनूॅं, सोचे है यह×हर नार।
उम्र देख ले तू अभी, है पचपन के पार।।
रहे सादगी से नहीं , देखो इसका हाल।
बाल खोल कर यूॅं चले, आया हो भूचाल।।
गोरी-काली वो सभी,चलें भेड़ की चाल।
फैशन की इस होड़ में, करें हाल बेहाल।।
मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश