1 सितम्बर से 30 सितम्बर तक मनाया जाएगा “राष्ट्रीय पोषण माह भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार, 17.7 लाख अत्यंत कुपोषित:सरकारी आंकड़े।

1 सितम्बर से 30 सितम्बर तक मनाया जाएगा “राष्ट्रीय पोषण माह

भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार, 17.7 लाख अत्यंत कुपोषित:सरकारी आंकड़े।

दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में, पाकिस्तान से भी चार गुना ज्यादा।

गर्भवती एवं शिशुवती महिलाओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण जागरूकता पर रहेगा जोर।

कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं।

प्रकाश कुमार यादव

रायपुर(अमर स्तम्भ):- महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए 1990 में राष्‍ट्रीय महिला आयोग अधिनियम के तहत जनवरी 1992 में गठित राष्‍ट्रीय महिला आयोग एक संवैधानिक और वैधानिक निकाय है। आयोग महिलाओं के सशक्तिकरण और समग्र विकास के लिए कई कार्यक्रमों शुरुआत की है ताकि अवसरों की उनकी पहुंच हो सके और वे खुद निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।दुनिया भर में स्वास्थ्य एक चिंता का विषय है। महिलाएं और बच्चे समाज का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं और उनके स्वास्थ्य व पोषण पर ध्यान केंद्रित करना बेहद महत्वपूर्ण है। महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं हैं और ये कई तरह के कारकों जैसे लिंग असमानता, कम उम्र में विवाह, घरेलू हिंसा, यौन शोषण, कुपोषण, गरीबी, निरक्षरता और बेहतर स्वास्थ्य की पहुंच आदि से प्रभावित होते हैं।सरकार ने कुपोषण के मुद्दे को उच्च प्राथमिकता दी है और इस मुद्दे के समाधान के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री की समग्र पोषण, पोषण अभियान और राष्ट्रीय पोषण मिशन भारत सरकार की प्रमुख कार्यक्रम हैं जो बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए शुरु की गई हैं। राजस्थान के झुंझुनू से 8 मार्च, 2018 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुरू किए गए पोषण अभियान ने कुपोषण की समस्या की ओर देश का ध्यान आकर्षित करने और इसे और इसे एक मिशन की तरह लिया गया। पोषण अभियान को गति देने के लिए 24 जुलाई 2018 को ‘भारत की पोषण चुनौतियों पर राष्ट्रीय परिषद’ ने सिंतबर महीने को राष्ट्रीय पोषण माह के रुप में मनाने की फैसला लिया था।प्रत्येक वर्ष 1 सितम्बर से 30 सितम्बर के बीच “राष्ट्रीय पोषण माह” मनाया जाता है जिसका उद्देश्य जनसामान्य को पोषण के महत्व से परिचित करवाना एवं सुपोषित आहार से स्वास्थ्य व्यवहार को विकसित करना है। इस बार पोषण माह कोविड नियमों के पालन के साथ ही विभिन्न विभागों की सामूहिक सहभागिता के जरिए मनाया जाएगा । इस संबंध में संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग दिव्या उमेश मिश्रा ने सभी जिला कलेक्टरों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी को पत्र प्रेषित कर इस आयोजन के संबंध में आवश्यक दिशानिर्देश दिए हैं।
राष्ट्रीय पोषण माह 2022 के आयोजन के संबंध में संचालक द्वारा जारी पत्र में जिला स्तर पर स्वास्थ्य पोषण एवं स्वच्छता संबंधी सेवाएँ एवं इसके प्रति जागरूकता जनसमुदाय तक पहुंचाने को कहा गया है। साथ ही माह भर चलने वाले इस आयोजन के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जनप्रतिनिधियों, पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि, सहयोगी विभागों, स्वयं सेवी संस्थाओं, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी, महिला स्व सहायता समूहों, महिला मंडल, नेहरू युवा केन्द्रों, नेशनल क्रे़डिट कोर, राष्ट्रीय सेवा योजना आदि की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने को भी कहा है।

इस बार इन गतिविधियों पर रहेगा फोकस:

हर वर्ष विशेष थीम के आधार पर राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जाता है। इस वर्ष भी महिला एवं स्वास्थ्य, बच्चा एवं शिक्षा- पोषण भी पढ़ाई भी, जेंडर संवेदी जल संरक्षण एवं प्रबंधन तथा आदिवासी क्षेत्र के महिलाओं एवं बच्चों हेतु परंपरागत आहार की थीम पर का आयोजन किया जाएगा। ये सारी गतिविधियां प्रतिदिन आयोजित होंगी तथा समस्त गतिविधियों को जनआंदोलन के डैशबोर्ड पोर्टल पर प्रतिदिन अपडेट किया जाएगा। प्रतिदिन होंगी गतिविधियां- प्रतिदिन विविध कार्यक्रम होंगे। इनमें मुख्य रूप से वजन त्योहार में छूटे हुए बच्चों का वजन एवं ऊंचाई मापन, ग्राम स्तर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और मितानिन द्वारा पोषण संदेशों पर आधारित नारा लेखन, गंभीर एवं मध्यम कुपोषित बच्चों को चिन्हांकित कर उनके पोषण देखभाल संबंधित परिचर्चा होगी। महिला स्वास्थ्य विषय पर कार्यशाला तथा आंगनबाड़ी और स्कूल स्तर पर खेल-खेल में पोषण ज्ञान एवं स्वच्छता कार्यक्रम आयोजित होगा। ग्राम पंचायतों में जल संरक्षण विषय पर जागरूकता कार्यक्रम एवं रैली निकाली जाएगी। स्वसहायता समूहों के माध्यम से स्थानीय पौष्टिक व्यंजनों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। इसके साथ बाल संदर्भ शिविर लगेगा और पंचायत स्तर पर एनीमिया से बचाव एवं प्रसव पूर्व , प्रसव पश्चात जांच पर संवेदीकरण किया जाएगा। इस दौरान पोषण वाटिका विकास एवं एनीमिया जांच कैंप भी लगेगा। खराब जीवनशैली से उत्पन्न बीमारियों मोटापा, मधुमेह के प्रति जागरूकता कार्यक्रम एवं ऑनलाइन योगासत्र भी आयोजित होगा।

भारत में कुपोषण का संकट और गहराया, देशभर में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित:

कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है।आज भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं।इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है, हालांकि राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि देश में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51%) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49%) के हैं।कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है।इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं।इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं।गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं।इस बात की जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी थी। मंत्रालय ने समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा एक आरटीआई के जवाब में कहा कि यह 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का संकलन है।देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं।मंत्रालय का अनुमान है कि कोरोना महामारी से गरीब से गरीब व्यक्ति में स्वास्थ्य और पोषण संकट और बढ़ गया हैं। इस पर चिंता जताते हुए मंत्रालय ने कहा कि 14 अक्टूबर 2021 तक भारत में 17.76 लाख बच्चे अत्यंत कुपोषित (एसएएम) और 15.46 लाख बच्चे अल्प कुपोषित (एसएएम) थे।ये आंकड़े अपने आप में खतरनाक हैं, लेकिन पिछले नवंबर के आंकड़ों से तुलना करने पर ये और भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। दोनों साल के आंकड़ों में एक बड़ा फर्क यह है कि पिछले साल छह महीनों से छह साल की उम्र तक के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लेकर सार्वजनिक की थी। इस साल ये आंकड़े सीधे पोषण ट्रैकर से लिए गए हैं, जहां आंगनवाड़ियों ने खुद ही इनकी जानकारी दी थी।एक फर्क और है इस साल के आंकड़ों में बच्चों की उम्र के बारे में नहीं बताया गया है, हालांकि कुपोषण को लेकर परिभाषाएं वैश्विक हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है या जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है। इससे एक श्रेणी नीचे यानी अत्यधिक रूप से कुपोषित (एमएएम) बच्चे वो होते हैं जिनकी बांह की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है।दोनों ही अवस्थाओं का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है।एसएएम अवस्था में बच्चों की लंबाई के हिसाब से उनका वजन बहुत कम होता है। ऐसे बच्चों का इम्यून सिस्टम भी बहुत कमजोर होता है और किसी गंभीर बीमारी होने पर उनके मृत्यु की संभावना नौ गुना ज्यादा होती है। एमएएम अवस्था वाले बच्चों में भी बीमार होने की और मृत्यु की संभावना ज्यादा रहती है।
महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम और तेलंगाना में भी कुपोषित बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दुनिया के सबसे जाने माने शहरों में गिनी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं।नवंबर 2020 और 14 अक्तूबर 2021 के बीच एसएएम बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है, जो अब 9,27,606 (9.27 लाख) से बढ़कर 17.76 लाख हो गयी है।पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब के मुताबिक महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6.16 लाख दर्ज की गयी, जिसमें 1,57,984 बच्चे अल्प कुपोषित और 4,58,788 बच्चे अत्यंत कुपोषित थे।इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर बिहार है जहां 4,75,824 लाख कुपोषित बच्चे हैं।तीसरे नंबर पर गुजरात है, जहां कुपोषित बच्चों की कुल संख्या गुजरात में कुल 3.20 लाख है।इनमें 1,55,101 (1.55 लाख) एमएएम बच्चे और 1,65,364 (1.65 लाख) एसएएम बच्चे शामिल हैं।अगर अन्य राज्यों की बात करें तो, आंध्र प्रदेश में 2,67,228 बच्चे (69,274 एमएएम और 1,97,954 एसएएम) कुपोषित हैं।कर्नाटक में 2,49,463 बच्चे (1,82,178 एमएएम और 67,285 एसएएम) कुपोषित हैं। उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख, तमिलनाडु में 1.78 लाख, असम में 1.76 लाख और तेलंगाना में 1,52,524 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।बच्चों के कुपोषण के मामले में नयी दिल्ली भी पीछे नहीं है।राष्ट्रीय राजधानी में 1.17 लाख बच्चे कुपोषित हैं।बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 46 करोड़ से अधिक बच्चे हैं।इसके अलावा ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिरा है।116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है।भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है।यह बेहद चिंताजनक है।

कुपोषण क्या है?

शरीर को आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय न मिल पाने की वजह से प्रतिरोधक क्षमता में कमी होना ही कुपोषण कहलाता है, जिसका शिकार अधिकांशतः महिलाएं एवं बच्चे होते है। कुपोषण के प्रभाव से महिलाएं एवं बच्चे कई तरीकों की बीमारियों से ग्रस्त रहते है। व्यक्ति के आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी व्यक्ति कुपोषण का शिकार बनता है। भोजन एवं पोषण की पर्याप्त मात्रा न मिलना कुपोषण का प्रमुख कारण है।भारत में कुपोषण के कारण
भारत में कुपोषण की समस्या को उत्पन्न करने वाले अनेक कारण है जो कि हैं:-

गरीबी:

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या का लगभग 25.7% तथा शहरी क्षेत्रों में 13.7% परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने वाले है। भारत में कुपोषण का एक प्रमुख कारण गरीबी को माना जाता है। एक शोध के अनुसार यह कहा गया है कि गरीबी की वजह से लोगों को न तो अच्छा भोजन प्राप्त हो पाता है और न ही स्वच्छ वातावरण और इन्हीं वजह से लोगों में कुपोषण की समस्या देखी जाती है।

पोषक आहार का अभाव:

पोषक आहार की कमी भी कुपोषण का प्रमुख कारण है जिसकी वजह भोजन में पोषक तत्वों की कमी है। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन को खाने में बच्चे अक्सर मना कर देते हैं क्योंकि उनमें स्वाद की कमी होती है। इस प्रकार के भोजन का सेवन करने की अपेक्षा वे जंग फ़ूड खाना ज्यादा पसंद करते है और इस प्रकार का भोजन करने का परिणाम कुपोषण होता है।

लिंग भेद:

भारत में लिंग भेद यानि लड़का और लड़की में भेदभाव सदियों से चली आ रही एक बहुत बड़ी समस्या है। माता-पिता लड़कियों की अपेक्षा लड़कों पर अधिक ध्यान देते है वे लड़कों को ही शिक्षा व अच्छा आहार देते है और इन सबसे लड़की वंचित रह जाती है यही कारण है कि अधिकांशतः लड़कियों में कुपोषण की समस्या देखी जाती है।

बाल-विवाह:

भारत में बालक एवं बालिकाओं का छोटी आयु में ही विवाह कर दिया जाता है जिससे वे कम उम्र में ही माँ-बाप बन जाते है और इनसे होने वाले बच्चे अधिकांशतः कुपोषित होते है। बच्चों के कुपोषण का एकमात्र कारण माता-पिता का उचित शारीरिक विकास न होना और माता का बच्चे को स्तनपान न करा पाना है। इसके अलावा गर्भधारण के समय पौष्टिक भोजन की कमी के कारण भी होने वाला बच्चा कुपोषित होता है। अतः बाल-विवाह भी कुपोषण का कारण है।

शिक्षा व ज्ञान की कमी:

लोगों में शिक्षा व ज्ञान की कमी भी कुपोषण का कारण है कई मातायें अपने बच्चे को छह माह तक स्तनपान और पहला पीला गाढ़ा दूध को गंदा समझकर बच्चे को दूध नहीं पिलाती क्योंकि वह इस बात से परिचित नहीं होती है कि वह दूध बच्चे के लिए कितना पौष्टिक होता है। इसके अलावा आजकल बच्चे जंग-फ़ूड को अधिक पसंद करते हैं और माता पिता भी उनको ऐसा आहार करने से नहीं रोकते अतः इन सबका परिणाम यह होता है कि बच्चे कुपोषण का शिकार बन जाते है और शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते है।

अस्वच्छ पर्यावरण:

अस्वच्छ पर्यावरण या वातावरण किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है क्योंकि ऐसा वातावरण विभिन्न बीमारियों को जन्म देती है जो कुपोषण का कारण बनते है। कई बच्चे पैसा कमाने के लिए कांच एवं चमड़े के कारखानों में कार्य करते है और इन कारखानों में कार्य करने से उनके स्वास्थ्य में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बच्चे कुपोषण एवं अन्य बीमारियों का शिकार बन जाते है।

धार्मिक कारण:

इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन के अनुसार धार्मिक कारणों की वजह से भी लोगों में कुपोषण की समस्या देखी जाती है क्योंकि धार्मिक कारणों की वजह से लोगों में कुछ तरह के पौष्टिक आहार से युक्त भोजन का सेवन करना गलत समझा जाता है। जिससे उन्हें पूर्ण पोषण नहीं मिल पाता और वे कुपोषित हो जाते है।

कुपोषण के निवारण के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास।

राष्ट्रीय पोषण नीति 1993
सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण नीति को वर्ष 1993 में स्वीकार किया गया था। इस नीति के अंतर्गत कुपोषण को दूर करने और सभी के लिए पोषण के लक्ष्य को निर्धारित करते हुए बहु-सेक्टर संबंधी योजनाओं की वकालत की गई थी। यह योजना देशभर में पोषण के स्तर को बढ़ाने और कुपोषण को रोकने के लिए मशीनरी को संवेदनशील बनाने पर जोर देती है।

मिड-डे मील कार्यक्रम:

इस योजना की शुरुआत वर्ष 1995 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में की गई थी। यह योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के अंतर्गत आता है। बाद में इस योजना में व्यापक परिवर्तन करते हुए वर्ष 2004 में पका हुआ पौष्टिक भोजन देना आरम्भ किया गया। इस योजना का उद्देश्य कम से कम 200 दिनों के लिए निम्न प्राथमिक स्तर के लिए रोजाना न्यूनतम 300 कैलोरी व 8-12 ग्राम प्रोटीन एवं प्राथमिक स्तर के लिए न्यूनतम 700 ग्राम कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन प्राप्त करने का प्रावधान किया गया।

भारतीय पोषण कृषि कोष:

भारतीय पोषण कृषि कोष (BPKK) की स्थापना महिला बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में की गई थी जिसका उद्देश्य बहु क्षेत्रीय स्तर पर कुपोषण को दूर करने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा इस योजना के तहत बेहतर पोषक उत्पादों के लिए 128 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की फसलों के उत्पादन पर जोर दिया गया था।

पोषण अभियान:

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संपूर्ण देश में कुपोषण की समस्या को देखते हुए वर्ष 2017 में पोषण अभियान की शुरुआत की जिसके तहत देश के राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों के सभी जिलों के छोटे बच्चे, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण एवं एनीमिया को कम करने का प्रयास किया गया है।

दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में, पाकिस्तान से भी चार गुना ज्यादा:

विश्व के एक तिहाई अविकसित बच्चे भारत में हैं।भारत के बाद नाइजीरिया और पाकिस्तान का नंबर आता हैं।विश्व के कुपोषित बच्चों की आधी आबादी इन 3 देशों में हैं। विश्व के अविकसित बच्चों में एक तिहाई संख्या भारतीय बच्चों की है, जिसके कारण कुपोषण के मामले में भारत नंबर वन पर आ गया है। बच्चों के पोषण और विकास के मामलों में भारत काफी पीछे है। ये जानकारी 2018 में जारी हुई वैश्विक पोषण रिपोर्ट (ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट) में सामने आई है। जानकारी हैरान कर देने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक अल्पविकसित, अविकसित और ओवरवेट बच्चों की संख्या भारत में बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में विश्व के 31 प्रतिशत कुपोषित बच्चे रहते हैं।

इंडोनेशिया और पाकिस्तान भी भारत से पीछे:

कुपोषण के मामले में भारत की स्थिति चिंताजनक है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 150.8 मिलियन (15.8 करोड़) बच्चें अविकसित हैं। इनमें से 46.6 मिलियन (4.66 करोड़) बच्चे सिर्फ भारत में हैं। ये रिपोर्ट भारत के लिए चिंताजनक संकेत दे रही है। भारत के बाद नाइजीरिया का नंबर है, यहां 13.9 मिलियन (1.39 करोड़) बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इसके बाद पाकिस्तान का नंबर है। पाकिस्तान में 10.7 मिलियन (1.7 करोड़) बच्चे अविकसित हैं। विश्व के सभी कुपोषित बच्चों की संख्या का आधा हिस्सा इन तीन देशों में ही रहता है।

अमेरिका और चीन में भी कुपोषण:

इस रिपोर्ट को इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्ययन के आधार पर बनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 5 साल से कम उम्र के 15.08 करोड़ बच्चे वैश्विक स्तर पर स्टंटिड और 5.05 करोड़ बच्चे वैस्टिड (उम्र के हिसाब से वजन में कमी) से पीड़ित हैं। इसके अलावा 3.83 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जो कुपोषण के कारण ओवरवेट के शिकार हैं। एक और हैरान कर देने वाला तथ्य यहा है कि इस रिपोर्ट में अमेरिका और चीन जैसे विकसित देशों का नाम भी शामिल है। इसके अलावा मिस्र और ब्राजील सहित दुनिया के 124 देश इस रिपोर्ट में शामिल हैं। ये अध्ययन दुनिया के 141 देशों पर किया गया था, जिसमें करीब 88 फीसदी देश कुपोषण के शिकार मिले हैं।

क्या हैं स्टंटिड और वैस्टिड में अंतर:

लंबे समय तक पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व न मिलने और इंफेक्शन का शिकार होने के कारण स्टंटिड (उम्र के मुताबिक लंबाई कम होने की समस्या) होती है, जबकि लंबाई के मुताबिक वजन बेहद कम होने पर उसे वैस्टिड (भुखमरी) का संकेत माना जाता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण वैस्टिड ही है।

सबसे ज्यादा कमजोर बच्चे भारत के:

ग्लोबल रिपोर्ट में भारत में कुपोषण की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सभी राज्यों में अविकसित बच्चों का अनुपात एक सा नहीं है। भारत के 604 जिलों में से 239 में ही 40 फीसदी से ज्यादा अविकसित बच्चे रहते हैं। कुछ जिलों में इसकी संख्या 65.1 फीसदी तक है तो कुछ में 12.4 प्रतिशत तक है। कमजोर बच्चों में भी भारत का स्थान सबसे ऊपर है। रिपोर्ट के मुताबिक 2005-06 की तुलना में ऐसे बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके अलावा वजन और लंबाई कम होने की समस्या भी भारतीय बच्चों में ज्यादा है। भारत मे 25.4 मिलियन (2.54 करोड़) बच्चे कमजोर हैं। इसके बाद 3.4 मिलियन (34 लाख) कमजोर बच्चों के साथ नाइजीरिया दूसरे नंबर पर है।

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