पति की दीर्घायु , स्वास्थ्य , सुख – समृद्धि , ऐश्वर्य तथा सौभाग्य के साथ – साथ जीवन के हर क्षेत्र में उसकी सफलता की कामना से सुहागिन महिलाओं द्वारा कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला यह व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जाता है , जो सुहागिनों का सबसे बड़ा व्रत एवं त्यौहार है ।

मनोज सिंह/ जिला ब्यूरो

करवा चौथ पर्व का हमरे देश में विशेष महत्व है क्योंकि ‘ विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और व्रत को चंद देखकर पति के हाथ से जल पेकर व्रत खेलती हैं । भारतीय समाज में वैसे तो महिलाएं विभिन्न अवसरों पर अनेक व्रत रखती हैं लेकिन पति को परमेश्वर मानने वाली नारी के लिए इन सभी व्रतों में सबसे अहम स्थान रखता है ‘ करवा चौध ‘ व्रत । यह व्रत महिलाओं के लिए ‘ चूड़ियों का त्यौहार ‘ नाम से भी प्रसिद्ध है । महिलाएं अत्र – जल ग्रहण किए बिना अपर श्रद्धा के साथ यह व्रत रखती हैं तथ रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन करके अर्ध्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं । यही वजह है कि अखण्ड सुहग का प्रतीक यह बत अन्य सभी व्रतों के मुकाबले काफी कठिन माना जाता है । कह जाता है कि इस व्रत के समाप्त सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है और सुहागिनें यह व्रत 12-16 वर्ष तक हर साल निरन्तर करती हैं , उसके बद वे चाहें तो इसका उद्यापन कर सकती हैं अन्यथा आजीवन भी यह व्रत कर सकती हैं । आजकल तो कुछ पुरुष भी पूरे दिन का उपवास रखकर पत्नी के इस कठिन तप में उनके सहभगी बनते हैं । दिनभर उपवस करने के बाद शाम को सुहागिनें करवा की कथा सुनती व कहती हैं तथ चन्द्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने सुहाग की दीर्घायु की कामना कर प्रण करती हैं कि वे जीवन पर्यन्त अपने पति के प्रत तन , मन , वचन एवं कर्म से समर्पित रहेंगी । पूजा – पाठ के बाद सुहागिनें अपनी सास के चरण स्पर्श कर उनसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं । करवा चौथ पर्व के संबंध में वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन सभी कथओं का सार पति की दीर्घायु और सौभाग्यवृद्धि से ही जुड़ा है । विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार ‘ करवा चौथ ‘ व्रत का उगम उस समय हुआ था , जब देवों व दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रह था और युद्ध में देवता परस्त होते नजर आ रहे थे । तब देवताओं ने ब्रह्माजी से इसका कोई उपाय करने की प्रार्थना की और ब्रह्मा जी ने उन्हें सलाह दी कि अगर सभी देवों की पत्नियां सच्चे एवं पवित्र हृदय से अपने पति की जीत के लिए प्रार्थना एवं उपवास करें तो देवता दैत्यों को पराप्त करने में अवश्य सफल होंगे । ब्रह्मा जी की सलाह पर समस्त देव पतियों ने कार्तिक माप्त की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया और रात्रि के समय चन्द्रोदय से पहले ही देवता दैत्यों से युद्ध जीत गए । तब चन्द्रदय के पश्चात् दिनभर की भूखी – प्यासी देव पत्नियों ने अपना – अपना व्रत खोल । ऐसी मान्यत है कि तभी से इसी दिन करवा चौथ का व्रत किए जाने की परम्परा शुरू हुई । करवा चौथ के व्रत के संबंध में अनेक प्रचलित कथाओं में से एक महभारत काल से जुड़े है । कह जाता है कि एक बार धनुर्धारी अर्जुन तप करने के उद्देश्य से नलगिरी पर्वत पर गए तो द्रोपदी बहुत चिंतित हुई । उसने विचार किया कि यहां हर समय कोई न कोई संकट से
आता ही रहता है इसलिए अर्जुन की अनुपस्थिति में इन संकटों से बचने के लिए क्या उपाय किया जाए ? तब द्रोपदी ने भगवन श्रीकृष्ण का स्मरण किया और श्रीकृष्ण को अपने मन की व्यथा बताई । द्रोपदी की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि पार्वती देवी ने भी एक बार भगवान शिव से बिल्कुल यहां प्रश्न किया था और तब भगवान शिव ने उन्हें कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली तमाम छोटी – बड़ी बाधाओं को दूर करता है । द्रोपदी ने श्रंकृष्ण से करवा चौथ के व्रत के संबंध में विस्तार से बतने का आग्रह किया तो कृष्ण ने द्रोपदी को इस व्रत के महत्व को दर्शाती कथा सुनानी आरंभ की । भगवन कृष्ण ने बताया कि इन्द्रप्रस्थ नगरी में वेद नामक एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सत पुत्र व एक पुत्री थी । विवाह के बाद जब पुत्री पहली करवा चौथ पर मयके आई तो उसने मायके में ही करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन चन्द्रोदय से पूर्व ही उसे भूख सताने लगी तो अपनी लाड़ली बहन की यह वेदना भाईयों से देख न गई । उन्होंने बहन से व्रत खोलने का आग्रह किया पर वह इसके लिए तैयार न हुई । तब भाईयों ने मिलकर एक योजन बनाई । उन्होंने एक गीगल के वृक्ष की ओट में प्रकाश करके बहन को कहा कि देखो चन्द्रमा निकल आया है ।
बहन भोली थी , इसलिए भाईयों की बात पर विश्वस करके उसने उस प्रकाश को ही चन्द्रम मानकर उसे हो अध्यं टेकर व्रत खोल लिया लेकिन जब अगले दिन वह ससुराल पहुंची तो पति को बहुत बीमार पया । दिन ब दिन पति की बीमारी बढ़त गई और सारी जमा पूंजी पति की बीमारी में ही लग गई तो उसने मंदिर में जाकर गणेश जी की स्तुति करनी शुरू की । उसकी प्रार्थना पर प्रसन्न होकर गणेश ने उसके समक्ष
प्रकट होकर कहा कि तुमने करवा चौथ का व्रत पूरे विधि विधान से नहीं किया , इसीलिए तुम्हारे पति की यह दशा हुई है । यदि तुम यह व्रत पूरे विधि विधान एवं निष्ठा के साथ करो तो तुम्हारा पति पूरी तरह ठीक हो जाएगा । उसके बाद उसने करवा चौथ का व्रत पूरे विधि विधान के साथ किया और इसके प्रभाव से उसका पति ठीक हो गया । यह कथा सुनाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी से कहा कि यदि तुम भी इसी प्रकार विधिपूर्वक सच्चे मन से करवा चौथ का व्रत करो तो तुम्हारे समस्त संकट अपने आप दूर हो जाएंगे । तब द्रोपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा और उसके व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई । अतः करवा चौथ के व्रत के उद्गम को इस प्रसंग से भी जोड़कर देखा जाता है और कहा जाता है कि इस के बाद सुहागिनें ‘ करवा चौथ ‘ व्रत रखने लगी । इस पर्व से संबंधित और भी कई कथाएं प्रचलित हैं , जिनमें सत्यवान और सावित्री की कहानी तथा करवा नामक एक धोबिन की कहानी भी बहुत प्रसिद्ध हैं । इस पर्व की शुरूआत एक बहुत अच्छे विचार पर आधारित थी मगर समय के साथ इस गर्व का मूल विचार और परिदृश्य बदल रहा है ।
गौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत का फल तभी है , जब यह के . व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूद कपट निंदा , अभिमान न करे । इस व्रत से जहां पति के प्रति पत्नी की निष्ठा एवं समर्पण भाव परिलक्षित होता है वह यह पर्व दाम्पत्य जीवन में आपसी विश्वास और भरोसे को मजबूत करने तथा संबंधों में मधुरता घोलने का त्यौहार है । सही मायने में करवा चौथ दाम्पत्य जंवन में एक – दूसरे के प्रति समर्पण का अनूठा पर्व है ।

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