जयपुर- राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खामियाद में कार्यरत है।प्रिंसिपल बिडियासर
*लाडनूं* निकटवर्ती ग्राम राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल है मोहनराम बिडियासर, हिंदी भाषा रोजगार बने ऐसा इनका मानना है। समय समय पर यह अपने मंच साझा करते हुए। कई बार विचार प्रकट किए हैं। इनका दर्शाया गया मूल सारांश उल्लेखित किया गया है
रचनार्थ अगर हम देश में हिंदी को लेकर लोगों के मन में भाव देखें तो तस्वीर बिल्कुल धुंधली नजर आती है। रीडरशिप सर्वे और प्रसार संख्या के आंकड़ों के जारी होने के बाद एक बार फिर से यह बात साबित हो गई कि पूरे देश में हिंदी के पाठक सबसे ज्यादा है। हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों के बीच प्रसार संख्या और पाठक संख्या दोनों का फासला भी बहुत बड़ा है। बावजूद इसके देश का हिंदी भाषी मानस अंग्रेजी को अपनाने के लिए ताबड़तोड़ कोशिश कर रहा है।
आज हिंदी भाषी प्रदेशों में तकरीबन हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान किसी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़े। नतीजा यह हुआ कि हर गली मोहल्ले में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की भरमार लग गई है। इन स्कूलों में ना तो बच्चों को ठीक से हिंदी पढ़ाई जाती है और ना ही अंग्रेजी। बच्चों के भाषा संस्कार का विकास ही नहीं हो पाता है। कहावत है ना कि ‘माया मिली ना राम’ ना अंग्रेजी मिल पाती है और हिंदी से भी वे दूर होते चले जाते हैं।
दरअसल यह एक मानसिकता है। आप अपने आसपास ही देखें तो पाते हैं कि मोहल्ले की परचून की दुकान पर हिंदी में बात करने वाला शख्स जब किसी मॉल में खरीदारी के लिए पहुंचता है तो वहां वह फौरन हिंदी का त्याग कर देता है। और मॉल की दुकान में घुसते ही एक्सक्यूज मी। टूटी फूटी अंग्रेजी बोल कर भी उनका सीना चौड़ा हो जाता है। यह हमारी वह मानसिकता है जो आजादी के पचहत्तर साल बाद अब तक गुलाम है। अंग्रेजी में बोलना फैशन नहीं है बल्कि अपने को श्रेष्ठ साबित करने की तमन्ना है। अपनी कुंठा को छुपाने का तरीका है। हम अपनी भाषा की अस्मिता और उसकी ताकत को पहचान पाने में बुरी तरह विफल रहे हैं।
सवाल इस बात का अवश्य है कि हमें हिंदी के व्याकरण और उसके नियम कानूनों की रक्षा करनी चाहिए। तथा हिंदी को विश्व में उसकी सही जगह दिलाने के लिए हमें थोड़ा लचीला रुख अपनाना होगा। आज हिंदी के तमाम लोग जिन पर हिंदी को बढ़ाने का दायित्व है वह बाजार को कोसते हुए घर बैठे हैं। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए क्या कर रहे हैं, यह ज्ञात नहीं है। बाजार के अपने नियम और कायदे होते हैं वह अपने हिसाब से हर चीज का उपयोग करना चाहती है। लेकिन बाजार आज एक हकीकत है, उससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ना ही बाजार की ताकत से टकराया जा सकता है। तो ऐसे में सही रणनीति तो यही होनी चाहिए कि बाजार की ताकत का इस्तेमाल अपने हक में करें। आज हिंदी को बढ़ाने के लिए बाजार का इस्तेमाल करने की जरूरत है, बाजार को कोसने कि नहीं।
आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी के विकास के लिए बनाई गई संस्थाएं एकजुट होकर रणनीति बनाएं। और बाजार को औजार के रूप में इस्तेमाल करते हुए उसके साथ नए लोगों को जोड़ने की पहल करें। हिंदी को अगर ताकतवर बनाना है तो उसको नए क्षेत्रों में लेकर जाना होगा। हिंदी को अन्य भारतीय भाषा के दुश्मन के तौर पर पेश नहीं करके उसको दोस्त की तरह से स्थापित करना होगा। सरकार से हिंदी के विकास और अहिंदी भाषाई क्षेत्रों में हिंदी के फैलाव के प्रयास की अपेक्षा करना व्यर्थ है। इस दिशा में हिंदी के लोगों को खुद ही आगे बढ़कर पहल करनी होगी। एक ऐसी पहल जिसमें हिंदी के लोगों को अपनी भाषा को लेकर आत्मविश्वास बढ़े और गैर हिंदी भाषियों के बीच हिंदी को लेकर दुश्मनी का भाव खत्म हो। हिंदी बाजार की भाषा बनने की राह पर बहुत आगे निकल गई है, और अब जरूरत है कि इस भाषा को रोजगार से जोड़ा जाए। जिस दिन हिंदी को रोजगार की भाषा बनाने में हम कामयाब हो गए। उस दिन हिंदी की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। और हिंदी की स्वीकार्यता और इज्जत दोनों बढ़ जाएगी रचनाकार मोहना राम
प्रधानाचार्य शहीद नंद किशोर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खामियाद ब्लॉक लाडनूं जिला डीडवाना- कुचामन